Advertisement

स्वर्ग और जन्नत धरती पर ही है

 स्वर्ग और जन्नत की हम केवल कल्पना ही कर सकते हैं। क्योंकि हम में से किसी ने स्वर्ग और जन्नत को नहीं देखा। स्वर्ग और जन्नत केवल हमारी सोच पर निर्भर करता है ।  हमारे देखने के नजरिया हमे स्वर्ग और जन्नत की ओर लेकर जाते है ।

स्वर्ग और जन्नत शब्द  का अर्थ एक ही है। बस इंसानो ने इसके दो शब्द कर रखा है, 

जैसे मुस्लिम लोग जन्नत का ख्वाब देखते हैं और हिंदू  लोग स्वर्ग के ख्वाब देते हैं लेकिन इन्हे सही मायनो मे नही पता की स्वर्ग को ही जन्नत कहा जाता है  मुस्लिम लोग जन्नत का ख्वाब इसलिए देखते हैं क्योंकि उनको  कुरान मे बताया गया है कि जन्नत 72  मे उसका स्वागत करेगी। 

और इसके विपरीत हिंदूओ  को  स्वर्ग की इच्छा होती है तो वह इस धरती पर अपने कर्मों और जिम्मेदारियों को पूरा करके वृद्धावस्था में ही स्वर्ग की इच्छा रखते हैं इसलिए कि उनको मोक्ष की प्राप्ति होगी

Lifeappki

स्वर्ग और जन्नत दोनों का मतलब एक है इसमें कोई अंतर नहीं है इन  लोगों की सोच ने स्वर्ग और जन्नत को बांट रखा है।  बस  इनके  रूढ़िवादी सोच ने बांट रखा है।  चाहे स्वर्ग की कल्पना करो या जन्नत की, 

स्वर्ग की कल्पना हम कुछ इस तरह से करते हैं कि जहां पर शुद्ध  वातावरण हो ,शांति का माहौल हो , जीवन मे कोई गम ना हो ,जीवन में परियों का वास इत्यादि और भी ऐसी बहुत सी सुंदर-सुंदर बातें हैं जो स्वर्ग के साथ जोड़ी जाती है।

परंतु स्वर्ग किसी ने नहीं देखा ,पता  नही स्वर्ग और जन्नत है भी या फिर केवल साधन मात्र के लिए बनाया गया है हमें अच्छे कर्मों की ओर प्रेरित करने के लिए हमें आगे चलकर स्वर्ग मिल पाएगा ,कि नहीं या तो हम ही नहीं जानते. लेकिन यदि हम चाहे तो हम अपनी कल्पना को साकार अवश्य ही  कर सकते हैं और  इस धरती पर  स्वर्ग और जन्नत का आनंद ले सकते हैं लेकिन यह कैसे संभव होगा।

स्वर्ग और जन्नत की खोज कैसे करें

हमारी पृथ्वी बहुत ही सुंदर है चारों और सुंदर दृश्य देखने को मिलेंगे । जिन्हें आप ने घृणा कि आग के धुए ने धुंधला कर दिया है । कुछ भी आपको  स्पष्ट दिखाई नहीं देता शायद यही कारण है, कि हम सुंदर धरती की सुंदरता का आनंद नहीं ले पा रहे हैं।  
यदि हम सचमुच स्वर्ग और जन्नत देखना चाहते हैं, तो पहले स्वयं को स्वर्ग के योग बनाना होगा ,क्योंकि ऐसा ना करने से हम स्वर्ग का रुप ही  नर्क मे बदल देंगे, हमारे न बदलने से स्वर्ग भी नर्क का रूप धारण कर लेगा।

किस तरह से हम धरती को स्वर्ग और जन्नत में बदल सकते हैं

हमारे अंदर परिवर्तन बहुत ही आवश्यक है। हमें अपने आप को बदलना होगा, पहले हमे अपने अंदर  प्रेम को जागृत करना होगा , दिल मे नफरत के स्थान पर दिल में प्रेम लाना होगा ,  खुद को स्वर्ग में रखने का अभ्यास हमें घर से ही शुरु करना होगा, 
घर चाहे छोटा हो अथवा बड़ा ,फर्नीचर कम हो अथवा ज्यादा बस उसे सजाए ,और खुशियों से भर ले, बिल्कुल वैसे ही खुशियां जिनकी कल्पना आप स्वर्ग में करते हैं

अब यह प्रश्न उठता है कि हम खुशियां लाए कहां से
 खुशिया तो  धन दौलत से तो खरीदी नहीं जा सकती, यदि ऐसा होता तो कोई भी अमीर व्यक्ति इन्हें खरीद लेता, और सुखी हो जाता, पर ऐसा नहीं है .आज गरीब के साथ-साथ अमीर व्यक्ति भी उतना ही दुखी है जितना एक गरीब व्यक्ति दुखी है,
 ••संसार मे  वह व्यक्ति जिसके पास  सब कुछ है, वह तब भी खुश नही है,  उसे कहते है बदनसीब,

••संसार मे वह व्यक्ति जिसके पास कुछ नही  है, वह  जो अपनी किस्मत  पर रोड़ा रोता है, उसे कहते किस्मत हीन

••संसार मे वह व्यक्ति  जिसके पास जितना है वह उतने मे खुश, उसे कहते है खुशनसीब


एक संतुष्ट व्यक्ति एक खुशी प्राप्त कर सकता है। क्योंकि सुख और खुशी उसे ही प्राप्त हो सकती है जो इसके लिए प्रयत्न करता है
छोटे-छोटे प्रयासों से हम अच्छा वातावरण तैयार कर सकते हैं। घर में सुंदर फूलों के अच्छे- अच्छे पौधे लगाए ,खिले हुए फूल देखकर आपका चेहरा भी खिल जाएगा इन फूलों के साथ अपनी सुबह महका सकते हैं, इन्हीं फूलों से आप अपने घर को सजा सकते हैं ,संभव हो तो घर को अपनी कला से सजाएं ,घर में सुंदर-सुंदर वस्तु  रखो जो आपको खुशी प्रदान कर सके, और इसके साथ ही जरूरी है कि आपसी प्यार और सहयोग के साथ ही अपने परिजनों से व्यवहार करें।
हर कोई व्यक्ति स्वर्ग और जन्नत की इच्छा रखता है इच्छा रखना गलत नहीं है, लेकिन थोड़ा बहुत   अपने मे परिवर्तन तो लाना ही होगा, जैसे ऊंची आवाज में बात करना ,बात- बात पर लड़ाई करना ,आपसी तकरार करना क्योंकि यह सब स्वर्ग में नहीं होता है, वहां तो होता है, प्रेम और खुशहाली जैसा कि आप चाहते हैं 
स्वर्ग और जन्नत में आपके साथ व्यवहार हो वैसा ही जैसे की आप कामना करते है,  जैसे सभी व्यक्ति  स्वर्ग   की कामना करते है,  स्वर्ग  किसने देखा है, अगर स्वर्ग सभी को देखना है तो स्वर्ग तो धरती पर  ही है । धरती ही स्वर्ग है, हर मानव  चाहे तो धरती को स्वर्ग या जन्नत  बनाया जा सकता है, बस हमे अपने   सोच को बदलना है, 

आप जरा सोचिये की हमे किस वस्तु की कमी है, हमारे पास रहने को घर है, खाने को भोजन  है, आदि सभी वस्तुयो तो है जो हमारे खुशी के लिये बनी है, 
 बस हमे अपने अंदर के दानव को मानव बनाना है  , बस अपने अंदर के इंसानियत को जगाने की,  धरती  स्वर्ग  बन जायेगी 
 
 बस जरूरत है प्यार की अगर सभी  लोगों  मे प्रेम हो  धरती  पर तो स्वर्ग को पाना निश्चित है आप अपनी इस धरती पर भी ,अपने घर में भी प्यार कर सकते ऐसा वातावरण जिस से नफरत कम होती जाए और प्रेम को बढ़ावा मिलता जाए . पने अंदर के इच्छा जलन को कम करें क्योंकि ऐसा करके हम अपनी ही को दुखी करते हैं, यदि मन दुखी हो तो क्या हमारा वह समय किसी नर्क से कम है अगर हम खुश नहीं है तो  वह समय क्या किसी नर्क से कम है हमारे अंदर इतनी समझदारी तो है , कि हम नर्क और स्वर्ग जैसे वातावरण में अंतर समझ पाए।
जब एक ही घर के दो व्यक्ति आपस में लड़ रहे हो तो क्या फिर वह वातावरण किसी नर्क से कम होगा, जहां प्रेम नहीं वहां कुछ नहीं प्रेम से ही स्वर्ग है, हमें  लोगों से प्रेम करना है, हम अपनो से नफरत से नहीं, प्रेम  करना है, परंतु संसार नफरतों से प्रेम करता है, जो  वस्तु बहुत प्यारी होती है उसे ही हम छोड़ना नहीं चाहते तो शायद नफरत इतनी प्यारी है कि हम उसे छोड़ ही नहीं पा रहे हैं हमें नफरतों का रोग लग चुका है मन में सदैव जलन की भावना होती है हम दूसरों से प्रेम की इच्छा रखते हैं . परंतु हम प्रेम देते समय  हर कोई चाहता है कि मुझे प्रेम मिले, परंतु दूसरों से तुम कठोरता से पेश आते हैं।

 स्वयं के लिए तो चाहते हैं कि हमारे मार्ग में  फूल ही फूल बिछे हो, परंतु दूसरे के रास्ते में कांटे  बिछाने से नही डरते है । माना कि इंसान ने बहुत प्रगति कर ली है परंतु इंसानियत में गिरावट उतनी ही आ गई है घरों में बड़े-बड़े ताले भी इंसानों ने इंसानों के कारण ही लगा  रखे है, ना की किसी पशु पक्षी  या जानवर के भय से, 
व्यक्ति ही व्यक्ति का शत्रु बन गया है एक दूसरे से ही डरते हैं भाई -भाई को मारने लगे तो क्या या किसी नर्क से कम है इंसान की कुछ कदर नहीं है मानवता किस सीमा तक समाप्त हो चुकी है यह आप सभी जानते हैं की मानवता का क्या है लोगो मे  मानवता की परिभाषा क्या रह गई है ।

यदि ऐसा चलता रहा तो इस घुटन भरे वातावरण में हमारा ही दम घुटने लगेगा ,ऐसे वातावरण को हम प्रेम की सुगंध से महका सकते हैं। प्रेम के रंगों से उसे सजा सकते हैं क्योंकि प्रेम से सब कुछ बदला जा सकता है परंतु पता नहीं क्यों मानव नफरत ही फैला रहे  हैं
अब आप सोचते होंगे कि यह सब तो कहने सुनने की बात है यहां स्वर्ग नहीं बन सकता तो हम उस स्वर्ग में भी कैसे रह सकते हैं, क्योंकि यदि हमने अपनी आदतें नहीं बदली तो हम अपने  व्यवहार से स्वर्ग का वातावरण भी दूषित कर देंगे। और यदि भाग्य वस हमने अपनी आदत बदल ली तो हम यहीं पर स्वर्ग बना सकते हैं.और कुछ करने की भी आवश्यकता नहीं बस स्वयं में बदलाव  करना है,यह धरती स्वयं ही स्वर्ग बन जाए ,लेकिन यदि हमारी आदतें बिगड़ गई है तो स्वर्ग का नक्शा भी  बिगाड़ कर रख देगे, भाव  यह है की  यदि हम अपनी मानवता की भावना पर आ जाए तो नर्क भी स्वर्ग है यदि मानव  बिगड़ कर दानव बन जाए तो स्वर्ग भी नर्क है, इसलिए जहां तक हो सके अच्छा सोचे अच्छा करने की कोशिश करें क्योंकि" जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि"

क्योकि  जैसा हमारा देखने का नजरिया होगा वैसे ही सृष्टि हमें दिखाई देगी, इसलिए पहले अपनी नजरिए और अपनी सोच को बदलिए धरती तो वाक्य में स्वर्ग है।
स्वर्ग की कल्पना तो हर कोई करता है, कर सकता है तो बस अपनी इस कल्पना में रंग भरने को है माना कि यह बहुत आसान नहीं है परंतु सरल तो कुछ भी नहीं होता, बैठे-बिठाए तो कुछ नहीं होने वाला दो वक्त की रोटी के लिए भी दिन- रात एक करना पड़ता है.यदि हम सब यह सोच ले कि छोड़ो जी कौन इतनी मेहनत करे ,किसान भी यही सोचने लगे कि कहां मैं पहले फसल खेत में  उगाऊंगा ,दिन भर मेहनत करनी पड़ेगी, फिर भी पता नहीं कि मेहनत का फल मिलेगा कि नहीं क्या पता प्रकृति आपदाए इसे नष्ट कर दी , तो इंसान के बस की बात नहीं है तो क्या होगा यह सब आप भी जानते हैं कि यदि इसी तरह से सभी सोचने लग जाए तो क्या हम यह सब कुछ पा सकते हैं जो आज हमारे पास है क्या कभी किसी ने यह सोचा था ,कि कोई यंत्र आकाश में उड़ सकता है और इस यंत्र के सहारे हमारी यात्रा जल्दी से तय हो सकती है आरंभ में किसने सोचा होगा कि ऐसा चमत्कार होगा जिससे हर घर रोशन हो जाएगा ,  तब किसी ने सोचा था की कोई कितना भी दूर रहे क्या उससे कभी बातें हो पाएंगे लेकिन सब मुमकिन है किसी ने सोचा है

जरा सोचिए यदि इतना कुछ हो सकता है और इंसान ने ही किया है तो और ऐसे कभी पहले देखा सुना कभी नहीं था, तो फिर अब यह क्यों नहीं हो सकता जो हम चाहते हैं हम भी वैसे ही इंसान हैं और कुछ असंभव नहीं करने जा रही है,जो हमारे मन में विश्वास आ जाए, यदि हम मन में ठान ले तो कुछ भी ऐसा नहीं जो ना हो सके ,बस यह सोचे कि चाहे कुछ भी क्यों ना हो जाए कोई कुछ भी क्यों ना कर ले हमें अपने उद्देश्य  पुरा करना है ।

हम अटल रहेंगे और कामयाब हो कर दिखाएंगे इसीलिए पहले स्वयं को दृढ़ करना होगा, इतना अपने आप पर आत्मविश्वास की कोई हमारे इरादों को ना तोड़ सके । हमें उनको अपनी और लाना है ना कि हमने उनकी ओर जाना अपने इरादों को बुलाकर अपने  लक्ष को पीछे छोड़कर नहीं जाना इससे पहले ही कि ऐसा वातावरण जिससे हमारा दम घुटता हैं हमें उसे रोकना होगा और उसे स्थान पर प्रेम और अपनापन बांटना होगा, ताकि हम चैन की सांस ले सके सुख और आनंद में रह सकें हमें सभी को जागृत करना होगा और एक खुशहाली दुनिया में लाना है


सभी में प्रेम बाटे बांटने से प्रेम बढ़ेगा ही कम नहीं होगा थोड़ी सी समझदारी हमें जीने की सही राह दिखा सकती है ,उचित बातों को प्रयोग में लाने की कोशिश करें ताकि हम जिंदगी को सही अर्थों में जिंदगी बना सके हमारे सहयोग और हमारे आपसी प्रेम से यह धरती एक दिन अवश्य ही स्वर्ग और जन्नत में बदल जाएगी फिर यहां ना आंसू होंगे और ना ही ना दर्द ना गम होगी तो केवल खुशियां ही खुशियां होंगी 


हंसी और प्रेम से भरा वातावरण होगा जिस   स्वर्ग और जन्नत की हम चाहत रखते है उसे हम अवश्य प्राप्त कर पाएंगे क्योंकि हमारी धरती बहुत सुंदर है किसी स्वर्ग या जन्नत से कम नहीं यह इस धरती पर वह सब कुछ है जो हमें आनंद दे सकता है. खुशी दे सकता है फिर भी क्यों हम उसे अनदेखा कर रहे हैं क्यों उसके अनंत से स्वयं को अपेक्षित करें खुशियां हमारे पास आती हैं, हम अपने दिल के दरवाजे नहीं खुलते और वह हमारे पास से गुजर जाती हैं यह यदि  नफरत छोड़ दे और दिल के द्वार खोल दे ,तो सभी सुख पा सकते हैं

जरा ध्यान से सोचिए कितना समय हो सकता है आपके पास इंसान के पास अधिक से अधिक 100 वर्ष उसमें से कितना समय तो हमने व्यतीत कर लिया और शेष कितना समय हमारे पास है ,पता नहीं कब हम इस दुनिया को छोड़ दें ,फिर किस लिए तकरार, किस लिए दूरियां और किस लिए नफरत है जो बीत गया वह तो वापस नहीं आने वाला लेकिन जो बचा है उसे तो संभाल कर रख सकते हैं, वो पल जी सकते है उस समय को यादगार बना ले ताकि हमारे बाद भी हमें लोग याद करें।

क्या हो  सकता है ऐसी करने की हम सब के दिलों पर राज कर सकते है शायद यही एक सबसे उत्तम दिन हो सकता है हमारी इस धरती मां को  हम यहां शांति अमन और सुकून चैन फैला और नफरत को जड़ से उखाड़ दे तभी यह धरती खुशहाल हो सकती है हम खुशहाल हो सकते हैं यदि कोई एक व्यक्ति कोशिश करेगा तो दूसरा भी देखकर साथ चल जायेगा ।
 
बस इंसान को एक छोटी सी कोशिश करनी चाहिए अपनी इस धरती को स्वर्ग और जन्नत बनाने की और इससे नर्क बनाने से बचाने की फिर इस धरती का नक्शा कुछ और ही होगा सुंदर धरती और सुंदर लगने लगेगी, सही मे दोस्तो  स्वर्ग या जन्नत धरती पर  है ।

मै आशा करती हु की   यह लेख स्वर्ग या जन्नत धरती पर ही अगर  आपको अच्छा लगा हो तो मुझे comment करे और बताये की आपको कैसा लगा, आप इस artical को अपने फ्रेंड और रिलेटिव में भी शेयर करें

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ